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यदत्त्यु॑प॒जिह्वि॑का॒ यद्व॒म्रोऽअ॑ति॒सर्प॑ति। सर्वं॒ तद॑स्तु ते घृ॒तं तज्जु॑षस्व यविष्ठ्य ॥७४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। अत्ति॑। उ॒प॒जिह्वि॑केत्यु॑प॒ऽजिह्वि॑का। यत्। व॒म्रः। अ॒ति॒सर्प॒तीत्य॑ति॒ऽसर्प॑ति। सर्व॑म्। तत्। अ॒स्तु॒। ते॒। घृ॒तम्। तत्। जु॒ष॒स्व॒। य॒वि॒ष्ठ्य॒ ॥७४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:74


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ्य) अत्यन्त युवावस्था को प्राप्त हुए पते ! आप और (उपजिह्विका) जिसकी जिह्वा इन्द्रिय अनुकूल अर्थात् वश में हो ऐसी स्त्री (यत्) जो (अति) भोजन करे (यत्) जो (वम्रः) मुख से बाहर निकाला प्राणवायु (अतिसर्पति) अत्यन्त चलता है (तत्) वह (सर्वम्) सब (ते) तेरा (अस्तु) होवे। जो तेरा (घृतम्) घी आदि उत्तम पदार्थ है (तत्) उस को (जुषस्व) सेवन किया कर ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - जिस पुरुष से पुरुष वा स्त्री का व्यवहार सिद्ध होता हो, उस के अनुकूल स्त्री-पुरुष दोनों वर्त्तें। जो स्त्री का पदार्थ है, वह पुरुष का और जो पुरुष का है, वह स्त्री का भी होवे। इस विषय में कभी द्वेष नहीं करना चाहिये, किन्तु आपस में मिलकर आनन्द भोगें ॥७४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) (अत्ति) भुङ्क्ते (उपजिह्विका) उपगताऽनुकूला जिह्वा यस्याः पत्न्याः सा (यत्) (वम्रः) उद्गलितोदानः (अतिसर्पति) अतिशयेन गच्छति (सर्वम्) (तत्) (अस्तु) (ते) (घृतम्) (तत्) (जुषस्व) (यविष्ठ्य)। [अयं मन्त्रः शत०६.६.३.६ व्याख्यातः] ॥७४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे यविष्ठ्य ! त्वमुपजिह्विका च यदत्ति वम्रो यदतिसर्पति तत्सर्वं तेऽस्तु, यत्ते घृतमस्ति तत्त्वं जुषस्व ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - यत्प्रति पतिः प्रवर्त्तते स्त्री वा तदनुकूलौ दम्पती स्याताम्। यत्स्त्रियाः स्वं तत्पुरुषस्य यत्पुरुषस्य तत्स्त्रिया भवतु, नात्र कथंचिद् द्वेषो विधेयः, किंतु परस्परं मिलित्वाऽऽनन्दं भुञ्जीयाताम् ॥७४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्त्री व पुरुष यांचा परस्पर व्यवहार अनुकूल असावा. तसेच ज्याच्यामुळे त्यांचा व्यवहार सिद्ध होतो त्याच्याही अनुकूल वागावे. जो पदार्थ स्त्रीचा आहे तो पुरुषाचा व जो पुरुषाचा आहे तो स्त्रीचा असावा. द्वेषभाव नसावा. परस्पर मिळून आनंद भोगावा.